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श्रमिकों की कमी को पूरा करना और विश्व के लिए मैन्युफैक्चरिंग के भारत के सपने को साकार करना
By Nirupama VG
YourStory - August 13 2023

2023 का डेटा इस मुद्दे की गंभीरता को उजागर करता है, यह दर्शाता है कि वर्तमान में भारत कारखानों, इंजीनियरिंग इकाइयों, विनिर्माण और संयोजन संयंत्रों, और इंफ्रास्ट्रक्चर परियोजनाओं सहित कई विषयों में श्रमिकों की मुख्य कमी का सामना कर रहा है.

हर साल, पूरे देश में, 12 मिलियन भारतीय युवाओं की उम्र रोजगार करने के योग्य होती है. असल में, 2030 तक, काम करने योग्य आयु वर्ग में, भारत में 1.04 बिलियन रोजगार वाले व्यक्तियों के होने का अनुमान है.

जबकि दुनिया के अन्य देश वृद्ध कार्यबल और श्रमिकों की कमी की चुनौतियों से जूझ रहे हैं, भारत विशिष्ट रूप से ऐसी स्थिति का अनुभव कर रहा है जहाँ कार्यबल आपूर्ति, मांग की तुलना में तेजी से बढ़ रही है, जिससे भारत इस प्रकार की प्रवृत्ति वाला एकमात्र देश बन गया है.

हालाँकि, इस विशाल जनसांख्यिकीय भाग के बावजूद, भारत कुशल और अकुशल श्रम की लगातार कमी से जूझ रहा है.

भारत में श्रमिकों की कमी

2023 का डेटा इस मुद्दे की गंभीरता को उजागर करता है, यह दर्शाता है कि वर्तमान में भारत कारखानों, इंजीनियरिंग इकाइयों, विनिर्माण और संयोजन संयंत्रों, और इंफ्रास्ट्रक्चर परियोजनाओं सहित कई विषयों में श्रमिकों की मुख्य कमी का सामना कर रहा है.

दरअसल, राष्ट्रीय स्किल विकास निगम (NSDC) की एक रिपोर्ट में अनुमान लगाया गया है कि 2022 में भारत की कुशल श्रम माँग लगभग 103 मिलियन श्रमिकों तक पहुँच जाएगी. हालाँकि, आपूर्ति में 29 मिलियन श्रमिकों की भारी कमी आई.

डिकोडिंग जॉब्स, 2022 में भारतीय उद्योग परिसंघ (CII) की एक रिपोर्ट में अनुमान लगाया गया था कि 2021 की तुलना में, 2022 में टियर -1 शहरों में लौटने वाले प्रवासियों की संख्या में कमी आएगी, जिसके परिणामस्वरूप मांग और आपूर्ति में 68% का महत्वपूर्ण अंतर होगा. रिपोर्ट में नॉन-टियर-1 शहरों में लौटने वाले प्रवासियों में 32% की कमी का भी अनुमान लगाया गया है. रिपोर्ट में प्रवेश स्तर, मध्य स्तर और ऊपरी स्तर के पदों सहित सभी स्तरों पर स्किल्ड प्रोफेशनल की नौकरियों में प्रतिभा की सीमित उपलब्धता पर भी जोर दिया गया है.

यह अंतर, भारत की वैश्विक विनिर्माण केंद्र और आर्थिक महाशक्ति बनने की परिकल्पना को प्राप्त करने में एक महत्वपूर्ण बाधा दिखाता है. इससे पहले कि यह देश के लिए मुसीबत बन जाए, इस द्वंद्व पर तुरंत ध्यान देने की आवश्यकता है.

भारत में श्रम की कमी के कारण और अर्थ:

आमतौर पर, श्रम शब्द उन लोगों के समूह के बारे में बताता है जिन्हें शारीरिक कार्य करने के लिए नियोजित किया जाता है. भारत में, इसमें कम शैक्षणिक योग्यता वाले समूह शामिल हो सकते हैं, जो दैनिक, साप्ताहिक या मासिक वेतन कमाते हैं, जिसमें गारंटीकृत नौकरी सुरक्षा, न्यूनतम वेतन रोजगार, पहचान दस्तावेज, क्रेडिट सुविधाएं, इंश्योरेंस कवरेज, उचित शिक्षा तक पहुंच आदि जैसी आवश्यक चीज़ों में बहुत कम या कोई लाभ नहीं है.

भारत में अंतरराज्यीय प्रवासियों की वार्षिक संख्या 4.5 प्रतिशत की वार्षिक वृद्धि दर के साथ, 5 से 6 मिलियन के बीच होने का अनुमान है. इस आंकड़े में प्रलेखित और गैर-दस्तावेजीकृत दोनों प्रकार के श्रमिक शामिल हैं, जो विभिन्न नियोक्ताओं और विविध उद्योगों के लिए काम करते हुए कई जगहों पर मौसमी प्रवास में लगे हुए हैं.

हालाँकि, यह उल्लेखित किया जाता है कि कोविड-19 महामारी के कारण लगाए गए लॉकडाउन की वजह से श्रमिक भारत के टियर 1 और टियर 2 शहरों को छोड़कर अपने गृहनगर लौट आए, लेकिन सच्चाई यह है कि यह समस्या वर्षों से बढ़ती जा रही है. इस परिदृश्य को करीब से देखने पर चीजें स्पष्ट हो जाएंगी.

प्रवासी कार्यबल: देश की श्रम शक्ति में बड़ी संख्या में भारत के भीतरी इलाकों से आए प्रवासी शामिल हैं. हालाँकि उनका प्राथमिक व्यवसाय कृषि हो सकता है, पर फसलों की कटाई के बीच के समय में जब उन्हें खेती से आय नहीं मिलती है, तो वो आजीविका कमाने के लिए शहरों की तरफ जाते हैं. इन लोगों की अधिक संख्या होने के बावजूद, ये लोग भारत के औपचारिक कार्यबल का हिस्सा नहीं हैं. और यहीं बड़ी समस्या है.

वेतन की समस्या: कम वेतन और आवास, स्वास्थ्य देखभाल, अवकाश और अन्य आवश्यक सुविधाओं का पूरा लाभ न मिलने के कारण, अन्य अनौपचारिक श्रमिकों के साथ-साथ प्रवासी भी शहरी क्षेत्रों में निम्न-गुणवत्ता वाली नौकरियों को स्वीकार नहीं करते हैं. इसके बजाय, वो स्थानीय कम-भुगतान वाले काम के अवसरों जैसे MGNREGS या अन्य आकस्मिक रोजगार विकल्पों में शामिल होना पसंद करते हैं, जो उनकी तत्काल जीवित रहने की जरूरतों को पूरा करते हैं. उन्होंने शहरी गरीबी के स्थान पर ग्रामीण गरीबी को चुना है.

शिक्षा प्रणाली: भारत में मौजूदा शिक्षा प्रणाली अक्सर व्यावहारिक स्किल से अधिक सैद्धांतिक ज्ञान पर जोर देती है. व्यावसायिक प्रशिक्षण कार्यक्रम पूर्ण रूप से विकसित नहीं हैं, जिसके कारण उद्योग की आवश्यकताओं और स्नातकों के पास मौजूद स्किल के बीच एक अनुपयुक्त संबंध है. यह कमी विनिर्माण क्षेत्र के लिए उपलब्ध टैलेंट पूल को सीमित करती है.

स्किल के विकास का अभाव: विनिर्माण उद्योग में विशिष्ट स्किल का एक विविध सेट आवश्यक है, जिसमें रोबोटिक्स, ऑटोमेशन, इंजीनियरिंग, प्रोग्रामिंग और विभिन्न अन्य तकनीकी डोमेन में विशेषज्ञता शामिल है. मशीनों और ऑटोमेशन पर बढ़ती निर्भरता के बावजूद, इन प्रौद्योगिकियों को संचालित करने और बनाए रखने में सक्षम श्रमिकों की मांग पूरी नहीं हुई है. दुर्भाग्य से, श्रमिकों को अपडेट रहने और आधुनिक समय की उभरती मांगों के अनुरूप ढलने के लिए आवश्यक प्रशिक्षण का लाभ नहीं मिलता है.

अन्य क्षेत्रों में प्रवासन: ई-कॉमर्स, IT, बिजनेस प्रोसेस आउटसोर्सिंग (BPO), सुरक्षा, खुदरा और हॉस्पिटैलिटी जैसे सेवा-उन्मुख उद्योगों ने व्यक्तियों को विनिर्माण और कम वेतन वाली फैक्ट्री नौकरियों से दूर कर दिया है. ये क्षेत्र अधिक आकर्षक पारिश्रमिक पैकेज और कथित नौकरी स्थिरता प्रदान करते हैं, जिससे विनिर्माण उद्योग के लिए कुशल और अकुशल श्रमिकों को आकर्षित करना चुनौतीपूर्ण हो जाता है.

धारणा और सामाजिक कलंक: विनिर्माण कार्य कभी-कभी निम्न सामाजिक स्थिति और छोटे काम से जुड़े होते हैं. यह धारणा, इस क्षेत्र में विकास और उन्नति की संभावनाओं के बारे में जागरूकता की कमी के साथ मिलकर, रोजगार योग्य व्यक्तियों को विनिर्माण क्षेत्र में करियर बनाने से रोकती है.

निवासी आबादी के कारण तनाव: अक्सर, किसी राज्य के भीतर घरेलू आबादी के कारण तनाव होता है, जिसके परिणामस्वरूप प्रवासी श्रमिकों का बड़े पैमाने पर अपने गृहनगर की सुरक्षा के लिए पलायन होता है.

श्रमिकों की कमी के व्यापक प्रभाव हो सकते हैं. यह घरेलू मांग को पूरा करने और अंतरराष्ट्रीय ऑर्डरों को पूरा करने की भारत की क्षमता में बाधा डाल सकता है, और वैश्विक विनिर्माण केंद्र के रूप में इसकी क्षमता को कमजोर कर सकता है. यह कमी तकनीकी प्रगति को भी सीमित कर सकती है, क्योंकि कुशल श्रमिक, इनोवेशन को प्रबल करने और उन्नत विनिर्माण तकनीकों को लागू करने के लिए महत्वपूर्ण हैं.

श्रम की कमी को कम करने के उपाय:

कुशल श्रम की कमी को दूर करने के लिए सरकारी निकायों, शैक्षणिक संस्थानों, और उद्योग साझेदारों के बीच सहयोग को शामिल करते हुए एक बहु-आयामी दृष्टिकोण की आवश्यकता है. यहां कुछ संभावित समाधान दिए गए हैं:

बेहतर इंसेंटिव: कारखानों और निर्माण स्थलों के भीतर काम करने की स्थिति को बढ़ाकर, साथ ही उच्च वेतन, आपातकालीन स्वास्थ्य सेवा, औद्योगिक समूहों के पास श्रमिकों के लिए कॉलोनी/होस्टल आदि जैसे लाभों को लागू करके, कंपनियां विनिर्माण क्षेत्र में श्रमिकों को आकर्षित करने और उन्हें रोके रखने की अपनी क्षमता बढ़ा सकती हैं.

पाठ्यक्रम में सुधार: शैक्षणिक संस्थानों को उद्योग-संगत प्रशिक्षण को शामिल करने के लिए अपने पाठ्यक्रम पर पुनर्विचार करना चाहिए. व्यावसायिक प्रशिक्षण कार्यक्रमों को मजबूत करना और प्रशिक्षुता को बढ़ावा देना सैद्धांतिक ज्ञान और व्यावहारिक स्किल के बीच के अंतर को कम कर सकता है.

सार्वजनिक-निजी भागीदारी: स्किल विकास पहल को बढ़ावा देने के लिए सरकार और निजी उद्यमों के बीच सहयोग. पाठ्यक्रम बनाने, प्रशिक्षण कार्यक्रम, और नौकरी पर प्रशिक्षण में उद्योग की भागीदारी रोजगार क्षमता को बढ़ा सकती है और व्यक्तिगत स्किल को उद्योग की आवश्यकताओं के साथ संरेखित कर सकती है.

जागरूकता और धारणा में बदलाव: विनिर्माण क्षेत्र में अवसरों और विकास संभावनाओं के बारे में छात्रों, अभिभावकों और समाज को शिक्षित करने के लिए पहल की जानी चाहिए. सेना में सैनिकों की भर्ती की मुहिम की तरह, सफलता की कहानियों को समझाने और उद्योग के पेशेवरों और छात्रों के बीच बातचीत के लिए मंच तैयार करने से धारणाओं को बदलने में मदद मिल सकती है.

अतिरिक्त स्किल और नई स्किल: लक्षित प्रशिक्षण कार्यक्रमों के माध्यम से, मौजूदा श्रमिकों को खुद को अतिरिक्त स्किल या नई स्किल सीखने के लिए प्रोत्साहित करने से कुशल श्रम की तत्काल मांग को काफी हद तक पूरा करने में मदद मिल सकती है. ऐसे कार्यक्रमों के लिए सरकारी और निजी क्षेत्र का समर्थन श्रमिकों को नई स्किल हासिल करने के लिए प्रोत्साहित कर सकता है.

कार्यबल में अधिक विविधता: इस क्षेत्र में प्रवेश के लिए, महिलाओं को प्रोत्साहित करने के लिए अधिक प्रयास करने की आवश्यकता है. निर्माता जो पद ऑफर करते हैं, उसके लिए उन्हें पात्रता मानदंडों की जांच करनी चाहिए और कार्यस्थल पर ऐसे बदलाव करने चाहिए जो विविधता को बढ़ावा देते हैं और रोजगार योग्य व्यक्तियों की एक बड़ी रेंज को नियुक्त करने को सक्षम करते हैं.

जबकि सरकार और उद्योग कल्याणकारी लाभों तक असंगठित श्रमिकों की पहुंच को आसान बनाने के लिए ई-श्रम पोर्टल, और नेशनल डेटाबेस ऑफ़ अनआर्गनाइज़्ड वर्कर्स (NDUW) जैसी पहल पर काम कर रहे हैं, फिर भी क्षेत्रों के अंतर को पूरा के लिए और भी बहुत कुछ करने की ज़रूरत है.

जर्मनी, ऑस्ट्रेलिया, जापान, गल्फ देशों और अन्य देश कम-कुशल भारतीय श्रमिकों का स्वागत कर रहे हैं. रोकथाम के लिए यह जरूरी है कि हम तेजी से कार्रवाई करें सुशिक्षित और कार्य कुशल व्यक्तियों के पलायन की तरह एक और पलायन, हमें मनुष्य और मशीन द्वारा बनाई जा सकने वाली हर चीज़ के लिए दुनिया की पसंदीदा जगह बनने के हमारे सपने से दूर कर देता है.